दूरियों से रिश्ते कहीं समाप्त नहीं हुआ करते – कर्नल आदि शंकर मिश्र
मेरी रचना, मेरी कविता
——XXXXX——
दूरियों से रिश्ते कहीं समाप्त नहीं
हुआ करते और ज़्यादा नज़दीकी
होने से भी रिश्ते बना नहीं करते हैं,
पक्के रिश्ते विश्वास से ही बनते हैं।

एक दूसरे की परवाह करते रहने से
जो विश्वास पनपता है, उससे रिश्ते
मजबूत भी होते हैं, एक दूसरे के प्रति
अपनापन रिश्तों का आधार होता है।
ताक़त नहीं, खच्चर की सवारी की,
यहाँ झूठे ही घुड़सवार बन बैठे हैं,
ऐसे चोर बहुत बड़े शातिर होते हैं,
जो गाँव के चौकीदार बन बैठे हैं।
धनवान बनने के लिए एक-एक
पैसे का संग्रह करना पडता है,
औऱ गुणी बनने के लिए एक एक
क़र्म को सद्गुण बनाना पडता है ।
इस जीवन का अर्जित संचित धन
अगले जन्म में काम नहीं आता है,
मगर इस जीवन में अर्जित पुण्य
क़र्म जन्म जन्म तक काम आता है।
परिस्थितियाँ मनुष्य का स्वभाव
भी अक्सर अस्थिर करती देती हैं,
वरना इंसान की रगों का खून तो
पहले जो था आज भी वही है ।
किसी का पद और पैसा तय नहीं
करते, कि कौन कितना श्रेष्ठ है,
आदित्य विचार व व्यवहार तय
करते हैं कि वह कितना श्रेष्ठ है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ