मन स्थिर शांत सरोवर हो – कर्नल आदिशंकर मिश्र, आदित्य
मानव मन तो एक सरल तम कृति हैजिसको ईश्वर ने ही स्वयं बनाया है,उसको उसी रूप में रखना या उसकासमुचित रखरखाव कर्तव्य हमारा है।मानव मन का विचलित होनामानव स्वभाव हो सकता है,पर मन को हर हाल शांत स्थिररखना अति आवश्यक होता है।मन स्थिर शान्त सरोवर हो,तल साफ़ दिखाई देता है,अंतर्मन जब स्थिर हो तबपथ स्वच्छ दिखाई देता है।मानव नेत्र केवल दृष्टि प्रदान करते हैं,परन्तु हम कब, कहॉं और क्या देखते हैंहमारे मन के भावों पर निर्भर करता है,क्योंकि मन में ईश्वर निवास करता है।मिली दुआ कभी बेकार नहीं होती है,बेहतर वक्त पर ही वह कबूल होती है,विश्वास रखें कि ईश्वर की इच्छा,हमारी इच्छाओं से बेहतर होती है।विडम्बना यह है कि ईश्वर को मानते हैं,पर अक्सर ईश्वर की बात नहीं मानते हैं,मन की अस्थिरता ही ऐसा करवाती है,ईश्वर एक है, उस पर भी विभेद दर्शाती है।उम्मीदें और आशाएँ बढ़ती जाती हैं,कुछ पूरी होते ही नई नई उग आती हैं,आदित्य इन पर नियंत्रण कर लिया जाय,उद्वेलित मन फिर स्थिर कर लिया जाय।कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्यलखनऊ
