मेरी रचना, मेरी कविता, “घर – परिवार के रत्न – कर्नल आदि शंकर मिश्र”

धरती के तीन रत्न ही होते हैं जिन्हें
सभी जल अन्न सुभाषित कहते हैं,
प्रस्तर खंडों के टुकड़ों को भी कुछ
अज्ञानी लालची महारत्न कहते हैं।

सन्तान हमारी परिवार रत्न होती हैं,
बेटा घर के भाग्य से पैदा होता है,
बेटी सौभाग्य से घर में पैदा होती है,
भेद नहीं कोई इनमें ये सन्तानें होती हैं।

हर इंसान के भाग्य अनेकों होते हैं,
जब मात्र एक भाग्य साथ देता है,
घर में एक पुत्र की प्राप्ति हो जाती है,
कुलदीपक की कमी नहीं रह जाती है।

कहते हैं परंतु जब मनुष्य के सारे
सौ भाग्य साथ देने लग जाते हैं,
उस घर में पुत्री की प्राप्ति होती है,
घर में लक्ष्मी रत्नरूप धर आती हैं।

पुत्री तो पराया धन कहलाती है,
रोकर ही पुत्री विदा की जाती है,
पर पराया धन होने से भी पुत्री,
घर की लक्ष्मी ही मानी जाती है।

पर घर में यह भी पाया जाता है कि
पिता अनुशासन वाला माना जाता है,
और पिता से तो कम, पर माँ से बेटा
बेटी का ज़्यादा लगाव हो जाता है।

माँ, जो कभी बेटी थी, बच्चों और
पिता के बीच बिचवानी करवाती है,
आदित्य माता पिता दोनो दो पहिये
होते हैं जिन पर गृहस्थी चलती है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ

Share This:-

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *