अश्वगंधा से बन सकती है कोरोना वायरस की दवा – IIT दिल्ली प्रोफेसर डी. सुंदर
परिचय – अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसके साथ-साथ इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊँचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उ0प्र0 एंव हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। इन्हीं क्षेत्रों से पूरे देश में अश्वगंधा की माँग को पूरा किया जा रहा है। अश्वगंधा एक द्विबीज पत्रीय पौधा है। ये पौधे सीधे, अत्यन्त शाखित, सदाबहार तथा झाड़ीनुमा 1.25 मीटर लम्बे पौधे होते हैं। पत्तियाँ रोमयुक्त, अण्डाकार होती हैं। फूल हरे, पीले तथा छोटे एंव पाँच के समूह में लगे हुये होते हैं। इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है। जो कि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी लम्बी 2.5-3.5 सेमी मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अन्दर से सफेद होती हैं। अश्वगंधा को जीणोद्धारक औषधि के रूप में जाना जाता है। इसमें एण्टी टयूमर एंव एण्टी वायोटिक गुण भी पाया जाता है।
कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन या दवा के शोध – अमेरिका से लेकर यूरोप तक हर देश कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन या दवा के शोध में लगा है. इसी दिशा में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Delhi) और जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनआईएसटी) ने एक संयुक्त शोध किया है शोध के अनुसार भारत में पहले से अपने औषधीय गुणों से पहचान बनाने वाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी अश्वगंधा (विथानिया सोम्नीफेरा) कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ एक प्रभावी चिकित्सीय और निवारक दवा बन सकती है. रिसर्च टीम ने पाया कि अश्वगंधा और प्रोपोलिस (मधुमक्खियों द्वारा अपने छत्ते को रोधक बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया सलाइवा) में कोरोना वायरस के लिए प्रभावी दवा बनाने की क्षमता है. आईआईटी दिल्ली में बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख व डीएआई लैब के कोआर्डिनेटर प्रोफेसर डी. सुंदर के अनुसार पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद का प्रचलन भारत में हजारों वर्षों से है. बीते एक दशक से आईआईटी दिल्ली व एआईएसटी के शोधार्थी आधुनिक तकनीकों के साथ पारंपरिक ज्ञान के साथ अध्ययन में जुटे हैं. नए अध्ययन में सामने आया कि अश्वगंधा के एक केमिकल कंपाउंड विथानोन में यह क्षमता है कि कोरोना वायरस के शरीर में चल रहे रेप्लीकेशन को वह रोक सकता है. इसके साथ ही मधुमक्खी के छत्ते के अंदर भी एक केमिकल कंपाउंड कैफिक एसिड फेनेथाइल ईस्टर (सीएपीई) का पता लगा है जोकि सॉर्स सीओवी-2 एम प्रो की मानव शरीर में चल रही गतिविधि को रोक सकता है. बता दें कि टीम का कहना है कि इस शोध में जो कंपाउंड हमें मिले हैं वह दोनों ही मानव शरीर में वायरस के रेप्लिकेशन के लिए जिम्मेदार सॉर्स-सीओवी-2 के मुख्य एंजाइम मैन प्रोटिएज को खत्म करने की क्षमता रखते हैं. फिलहाल ये स्टडी समीक्षाधीन है और निकट भविष्य में प्रकाशित होने की उम्मीद है.