नारी स्वावलंबन और भारतीय संविधान
अलीगढ़ – अगर इतिहास के प्रश्नों को फिर से पलट आ जाए तो हम पाएंगे कि भारतीय महिलाओं की स्थिति से समय के साथ साथ कितना सुधार हो रहा हैं। महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता था और आज इस तरह का व्यवहार किया जाता है ? उसे केवल एक वस्तु के रूप में कैसे देखा गया और आज एक महिला घर से लेकर से सेना तक अपना परचम लहरा रही है? आज भारतीय समाज में बढ़ते शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण महिलाओं के प्रति होने वाले व्यवहार में एक परिवर्तन की लहर दौड़ रही हैं। आज के महिला स्वयं की स्वतंत्रता, स्वावलंबन, सुरक्षा, अधिकारों से भली भांति परिचित है। भारतीय संविधान एक समान शिक्षा एक समान अधिकार का पक्षधर है। महिलाओं के साथ परिवर्तित होते सामाजिक एवं आर्थिक आयामों ने महिलाओं को सशक्त बनाया है। आज महिला शिक्षा से लेकर सेना तक अपने कदमों को तेजी से बढ़ा रहे हैं। स्वतंत्रता से पूर्व एवं स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय समाज की बदलती स्थिति और जागरूकता इसका मुख्य कारण है। भारतीय संविधान किसी एक को प्रधानता नहीं देता बल्कि वह समान शिक्षा समान अधिकार और सामान दायित्व के संतुलन पर आधारित है जोकि भारतीय समाज को एक नवज्योति प्रदान करता है।
आज बढ़ते शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं महिलाओं में स्वयं के प्रति उभरते दायित्व और अधिकारों की भावना जागृत हो रही है, जिसके कारण वह स्वयं की दायित्व का निर्वाह करते हुए अपने अधिकारों के प्रति भी सजग हैं।
राष्ट्र सम्मान और राष्ट्रहित में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एक सशक्त संवैधानिक व्यवस्था की नींव लग रही है। जो भविष्य में एक अखंड भारत के निर्माण में अत्यंत आवश्यक है।
शिवानी जैन एडवोकेट
