मेरी रचना, मेरी कविता – “तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे- कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य”

तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे,
अच्छा विद्यार्थी बन पाना मुश्किल,
अच्छा शिक्षक बन पाना मुश्किल,
जब अच्छे इंसान नहीं बन पायेंगे,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे।

भूखों की भूख मिटा पाना मुश्किल,
प्यासों की प्यास बुझा पाना मुश्किल
गरीब को जीवन जी पाना मुश्किल,
जब गरीब और गरीब रह जाएँगे,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे।

भारत की अखंडता पर चोट पड़ी है,
सांप्रदायिकता चारों ओर बढ़ी है,
जातिवाद का कलंक व्याप्त है,
हिंदू मुस्लिम झगड़े का शोर मचायेंगे,
तो हम विश्व गुरू कैसे बन पाएँगे।

जन मानस की बेचैनी न जान सके,
अच्छे दिन देखने को भी तरस गए,
इतिहास खंगालने में भी उलझ रहे,
सोते समग्र भारत को न जगा पायेंगे,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे।

आज आधुनिक युग में दुनिया से,
भारत को कदम मिलाकर चलना है,
अपनी संस्कृति अपनी परम्परा को,
जब सुरक्षित, संरक्षित न रख पाएँगे,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पायेंगे।

यह सभ्यता संस्कृति संघर्ष का दौर है,
तर्क संगत बन पक्ष रखने का दौर है,
ऐतिहासिक पक्ष सम्भालने का दौर है,
यदि सकारात्मक समाज न बन पाएँगे,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे ।

हर बात का विरोध करना ठीक नहीं,
वैचारिक तकनीक समझना होगा,
हर मज़बूती, तर्क पूर्ण बनना होगा,
आदित्य एक नया भारत न बनायेंगें,
तो हम विश्व गुरु कैसे बन पाएँगे।

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ

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