विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित और सुरक्षित करने की मुहिम-शिवानी जैन एडवोकेट

ऑल ह्यूमंस सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन की डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने बताया कि विश्व की कुल बाघ आबादी के लगभग 70% भारत में रहते हैं। जिसमें 4,000 से कम बाघ बचे हैं। भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में, मानव-वन्यजीव संघर्ष भी इसकी घटती संख्या के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।वहीं कई प्रजातियां ऐसी भी हैं जो विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं, ऐसे में इस गंभीर समस्या के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय विलुप्त प्राय प्रजाति दिवस मनाया जाता है।
विश्व हिंदू परिषद दुर्गा वाहिनी की अध्यक्ष डॉ कंचन जैन ने कहा कि जंगलों में इंसानी दखल की वजह से वन्यजीव संकट में है और अनुकूल वातावरण नही मिलने से कई जीव जंतु प्रजातियां या तो लुप्त हो गई है या लुप्त होने के कगार पर है।जिन्हे अब संरक्षित और सुरक्षा देने की चर्चा शुरू हो चुकी है।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक इं० विपिन कुमार जैन ने बताया कि एक सींग वाले गैंडों को दशकों से उनके सींगों के लिए भारी निशाना बनाया गया है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्षों का खतरा बढ़ जाता है।
अब भारत में सबसे लुप्तप्राय प्रजाति में ब्लैकबक या भारतीय मृग है। लगभग 20 वर्षों से उनकी मात्र संख्या लगभग 8000 है। उनकी संख्या बढ़ाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना के वनों में छोड़ा जा रहा है।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के संरक्षक एवं जीव दया के सक्रिय सदस्य एडवोकेट हरेंद्र सिंह चौहान, एडवोकेट राकेश दक्ष, एडवोकेट संजीव सोलंकी, एडवोकेट रामबाबू वर्मा, एडवोकेट आलोक मित्तल, एडवोकेट शालू सिंह ने वन्यजीवों के अवैध शिकार पर, भोजन के कारण, आवास ना होने के कारण, घास के मैदानों की कमी एवं भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं, विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के कारण को विलुप्त हो रही प्रजातियों के लिए मुख्य कारण बताया। विलुप्त हो रहे वन्य जीव एवं उनके संरक्षण के लिए वनों की कटाई को रोका जाए, अवैध शिकार के कानून को और सख्त किया जाए, नागरिकों को जीव दया के प्रति जागरूक किया जाए, मांसाहार प्रतिबंधित किया जाए, अन्यथा पृथ्वी असंतुलित हो जाएगी जिससे कि मानव जीवन खतरे में पड़ सकता है।
मानव यह भूल चुका है कि पृथ्वी पर जीव जंतुओं का भी पृथ्वी पर रहने का अधिकार उतना ही है जितना कि मनुष्य का। वनस्पति, जीव जंतु, और मानव एक दूसरे के अस्तित्व के पूरक हैं। सन 1973 में वाशिंगटन में 80 देशों के प्रतिनिधि एकत्रित हो गए और जीवो के संरक्षण के लिए एक आचार संहिता बनाई गई जिसे कनवेंशन ज्ञान इण्टरनेशनल ट्रेड एण्ड एडेंजर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फाॅना एण्ड फ्लोरा’नाम दीया गया। इसमें खासतौर से यह कहा गया है कि संकटग्रस्त जीव जंतुओं और वनस्पतियों को बचाने का उत्तरदायित्व समुचित मानव जाति का है।

डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ
शिवानी जैन एडवोकेट

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