शीर्षक – इन्साफ ए खुदा – डॉ एच सी विपिन कुमार जैन
क्षण प्रतिक्षण कोई ना कोई दुनिया छोड़ रहा है।
और एक तू है कि कफन में जेब ढूंढ रहा है।
पंक्ति में सभी लगे हैं, मगर तुझे एहसास नहीं
कि फंदा एक गले का तेरे लिए भी,
तैयार है।
झूठ, फरेब और मक्कारी , हिसाब हर पल का होगा।
यहां हस्ताक्षर तेरे नहीं, और ना ही तेरे फरेबियों के,
कोई गवाही
सामने देख तू अपने, सच और झूठ का आइना होगा।
आज जिस कुर्सी पर बैठा है, तू।
उसी कुर्सी पर बैठकर खुदा ए इंसाफ हो रहा होगा।
ना कोई सुनवाई होगी, ना ही कोई अपील होगी।
निर्णय उसका ही तेरी तकदीर होगी।
गिड़गिड़ायेगा तू ,सर अपना पटक रहा होगा।
मौत मांगेगा भी तू , पर उसे वक्त तेरी सुन कौन रहा होगा।
अपनी दुर्दशा पर, तू ही ठहाके लगा रहा होगा।
हर क्षण जीने और मरने का एहसास,
देख कर
उस गिरगिट को , तेरा मन यही कह रहा होगा।
लगाई थी,
आग जिन -जिन घरों में,
उसी की चिंगारी से, तेरा घर भी जल रहा होगा।
